इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र
Home
ARTICLES
NEWS
Newspapers
विभिन्न VSK साइटों के लिए लिंक
Views
Feedback
Photo Gallery
Narad Samman
Narad Samman (Online)
Narad Samman (PDF)
मुख्य पृष्ठ
Views
कठुआ का सच: असली साजिश का पर्दाफाश होना चाहिए
Last Updated On: 09/05/2018
जम्मू कश्मीर के कठुआ क्षेत्र में एक दुखद और निंदनीय घटना में जनवरी 2018 में एक अबोध बालिका की हत्या कर दी गई। बच्ची बकरवाल समुदाय की थी और इस क्षेत्र के रसाना नामक गांव में उसकी लाश मिली। इस घटना का पिछले कुछ दिनों में जिस तरह से राजनीतिकरण हुआ वह और भी दुखद था। यह सर्वविदित है कि बकरवाल समुदाय मुस्लिम है और कश्मीर घाटी के कुछ अलगाववादी समर्थकों से बिल्कुल उलट यह समुदाय घोर राष्ट्रवादी है। कारगिल युद्ध के समय भी शुरूआत में इसी समुदाय के सदस्यों ने भेड़ें चराने के दौरान सीमा पर घुसपैठियों और पाक सेना की अनधिकृत मौजूदगी के बारे में सरकार और सेना को आगाह किया था। बकरवाल समुदाय मूलत: घुमंतु प्रवृत्ति का है और वे गर्मियों में भेड़ों आदि के साथ जम्मू — कश्मीर के दुर्गम इलाकों में ऊपर पहाड़ों में चले जाते हैं तथा सर्दियों में नीचे मैदानी इलाकों में उतर आते हैं।
बकरवाल समुदाय को एक प्रकार से आप ‘First Line of Defence’ ( फर्स्ट लाइन आफ डिफेंस) भी कह सकते हैं। कश्मीर में भारत — पाक सीमा पर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां से पड़ोसी देशों से आतंकवादी घुसपैठ करने का प्रयास करते हैं। बकरवाल समुदाय से मिली जानकारियां और उनकी पैनी नजर सुरक्षा बलों को इन घुसपैठियों को रोकने में भरपूर मदद करती है।
ऐसे में बकरवाल समुदाय की इस बालिका की हत्या को निहित स्वार्थी तत्वों ने उन्हें हाशिए पर धकेलने के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की और जाने — अनजाने बहुत से लोगों ने इस षड्यंत्र को और आगे बढ़ाने में मदद की। इस घटना को इस प्रकार से प्रॉजेक्ट किया गया मानों यह स्थानीय डोगरा समुदाय और बकरवाल समुदाय के बीच आपसी संघर्ष का नतीजा है। घटना की जांच जिस प्रकार से की गई वह अपने आप में शक पैदा करती है कि क्या कश्मीर प्रशासन के एक हिस्से की भी इसमें मिलीभगत थी और कश्मीर में आतंकवाद की ठंडी पड़ती आग में दोबारा घी डालने के लिए कुछ खास तत्वों ने इस मामले में डोगरा बनाम बकरवाल बनाने का प्रयास किया ?
हाल ही में तथ्यों की जांच करने के लिए कठुआ में दिल्ली से बुद्धिजीवियों की एक टीम- ग्रुप आफ इंटेलेक्चुअल्स ऐंड अकैडमीशियन्स( GIA) गई थी। इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में कुछ चौंकाने वाली बातों का उल्लेख किया है। इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री डा. जितेंद्र सिंह व केंद्रीय गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह को भी सौंपा जा चुका है। आईए उनमें से कुछ बातों पर नज़र डालते हैं।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 23 अप्रैल से 26 अप्रैल तक जम्मू , कठुआ और रसाना गांव का दौरा किया और सभी पक्षों से बात की जिनमें मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी शामिल थीं। टीम की रिपोर्ट के अनुसार इस पूरे मामले में बहुत से ऐसे तथ्य हैं जो चार्जशीट और जमीनी वस्तुस्थिति से अलग हैं। इस मामले में 10 दिन के अंदर तीन स्पैशल इन्वेस्टिगेटिव टीमों का गठन ही कई सवाल खड़े करता है। जो आखिरी एसआईटी बनाई गई रिपोर्ट के अनुसार उसमें दो दागदार पुलिस ऑफिसर हैं- इरफान बानी पर एक हिन्दू लड़के के कस्टोडियल मर्डर और उसी की बहन से बलात्कार का मामला दर्ज है और नासिर हुसैन पर सबूत मिटाने का मामला दर्ज है ।
राज्य में सभी चार्जशीट उर्दू में अदालत में पेश की जाती हैं लेकिन इस मामले में अंग्रेजी में चालान पेश किया गया। और यह प्रश्न अब तक अनुत्तरित है कि मृतक बच्ची का नाम , धर्म और फोटो मीडिया को किसने दिया। मीडिया के एक वर्ग ने भी नैतिक और कानूनी दोनो सीमाओं का उल्लंघन कर बच्ची की पहचान जाहिर कर दी।
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने चर्चित देवस्थान का दौरा किया जहां चार्जशीट के अनुसार लड़की को कई दिन तक अपहृत कर रखा गया था और उससे तथाकथित रूप बलात्कार किया गया।
रसाना गांव का यह देवस्थान आसपास के कई गांवों के कुल देवताओं का स्थान है। लगभग 20X35 फीट के में कोई तहखाना नहीं है जबकि आरोप यह लगाया गया है कि अपहृत बच्ची को मंदिर में तहखाने में रखा गया था। इस देवस्थान के तीन दरवाजे और तीन खिड़कियां हैं। खिड़कियों पर केवल ग्रिल लगी है । लकड़ी और शीशे के पल्ले भी नहीं है। पास से गुजरने वाला कोई भी व्यक्ति आसानी से कमरे में झांककर सब कुछ देख सकता है। जिस टेबल के नीचे बच्ची को छुपाने का दावा किया गया है वो साढ़े तीन फुट का टेबल है , जबकि बच्ची का कद चार फीट था। इस टेबल के नीचे किसी को भी छुपाना सम्भव नहीं है और इसी बीच दो बड़े त्यौहार आए , लोहड़ी और मकर संक्रांति। लोहड़ी और मकर संक्रांति को यहां लोग अपने कुल देवताओं की पूजा करने आए और एक बड़ा भंडारा हुआ। ऐसे में किसी को बेहाशी की दवा देकर भी छुपाना मुश्किल है। एक कमरे के देवस्थान जिसमें सुबह — शाम लोग पूजा करने आते हैं , अपह्त बच्ची को रखना कैसे संभव है ?
रिपोर्ट के अनुसार रसाना गांव के लोगों ने बताया कि 16 जनवरी को दिन ढलने के बाद गांव का ट्रांसफार्मर जल गया और पूरा गांव अंधेरे में डूब गया। गांव के एक रिटायर्ड फौजी बिशन दास शर्मा ने बताया कि 16 जनवरी की रात लगभग 2:30 बजे बुलेट मोटर साइकिल पर दो लोग कम्बल ओढ़ कर आए और गांव से ऊपर की ओर गए। बिशनदास शर्मा ने बताया कि लगभग आधे घंटे के बाद मोटर साइकिल गांव से वापस बाहर चली गई और अगले दिन सुबह देवस्थान के पास बच्ची का शव पाया जाता है। यह भी जांच का विषय है।
मुख्य आरोपी सांझीराम के बेटे विशाल जंगोत्रा की रसाना गांव में 12, 13, 14, 15 फरवरी की उपस्थिति भी संदेह के घेरे में है। चार्जशीट के मुताबिक विशाल जंगोत्रा अपनी परीक्षा छोड़कर विशेष रूप से बच्ची का रेप करने के लिए रसाना आया लेकिन कॉलेज के कागजात के मुताबिक विशाल अपने कॉलेज में ही था और उसने परीक्षाएं दीं। ”
इस टीम की रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब इन बुद्धिजीवियों पर एक खास विचारधारा का लेबल चस्पा करने का अभियान आरंभ हुआ है। विडंबना यह है कि जो लेबल चस्पा करने की कोशिश कर रहे हैं , वे कभी घटनास्थल पर गए ही नहीं , जबकि यह टीम उस घटनास्थल पर कई दिन बिताकर आई और सौ से अधिक पेज की अपनी रिपोर्ट में उसने बाकायदा सभी से की गई बातचीत का विस्तृत ब्यौरा दिया है। एक बात और इस टीम से ऐडवोकेट , पत्रकार , प्रफेसर जैसे प्रतिष्ठित व स्थापित प्रफेशनल शामिल थे। वे भला क्यों घटनास्थल पर जाकर झूठ बोलेंगे और सार्वजनिक रूप से अपनी रिपोर्ट जारी करेंगे ? किसी भी सच को जानने के लिए ऐसे मामले में घटनास्थल पर जाना सबसे जरूरी है। यह टीम घटनास्थल पर गई थी। जो इस रिपोर्ट से सहमत नहीं हैं , उन्हें चुनौती देने से पहले एक बार घटनास्थल पर जाकर स्वयं अपनी आंखों से सच्चाई देख कर कुछ कहना चाहिए। लुटियन्स दिल्ली के बंद कमरों में बैठकर बिना घटनास्थल पर गए ऐसे संवेदनशील मामलों में टिप्पणियों करने के अपने खतरे हैं जिनसे हम सब वाकिफ हैं।
यह निर्विवाद है कि जिसने भी यह अपराध किया है उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अगर स्थानीय पुलिस की कार्रवाई संदेह से परे नहीं है तो किसी उच्चस्तरीय केंद्रीय एजेंसी से जांच करवाने में कोई एतराज क्यों होना चाहिए। अगर ये बच्ची किसी गरीब नहीं बल्कि प्रभावशाली परिवार से होती तो शायद अब तक सीबीआई ने जांच आरंभ कर दी होती। साथ ही एक बार फिर यह रेखांकित करने की जरूरत है कि ये मानवता के खिलाफ अपराध है। इसे वैचारिक लड़ाई में उलझाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसलिए घटना में सामने आए नए तथ्यों की फौरन निष्पक्षता से जांच होनी चाहिए। बकरवाल समुदाय व स्थानीय निवासियों के बीच खाई पैदा करने के प्रयासों को रोका जाना चाहिए। इस मामले में रची गई साजिश का पर्दाफाश होना जरूरी है वरना हम आने वाली पीढ़ियों को क्या जवाब देंगे। इसलिए कृपया कर वैचारिक लड़ाई को बंद कर , इस बच्ची के असली हत्यारों को पकड़ने के लिए सरकार और प्रशासन पर दबाव बनाएं। एक सभ्य समाज से कम से कम इतनी अपेक्षा तो हो ही सकती है।
(लेखक : अरुण आनंद)
Source:
नवभारत टाइम्स
Back
Copyright (c) 2014 VISHWA SAMVAD KENDRA, All rights reserved, Content provided & updated by VISHWA SAMVAD KENDRA, DELHI